अपान मुद्रा (गुर्दा रोग
नाशक)
(The Healthy posture)
मनुष्य को स्वस्थ
रखने के लिए अपान मुद्रा
का प्रयोग भी
महत्वपूर्ण है। शरीर
से विजातीय तत्वों
के निष्कासन में
यह मुद्रा अच्छा
काम करती है।
यह मुद्रा विसर्जन
क्रिया को नियमित
करती है और शरीर को
निर्मल बनाती है।
यद्यपि योगासन और
प्राणायाम की क्रियाएं
ऐसी है जिसमें
शारीरिक निर्मलता प्राप्त
होती है। साधकों
को योग की उच्च स्थिति
में पहुंचाने के
लिए सूक्ष्मातिसूक्ष्म स्वच्छ
स्थिति की आवश्यकता
रहती है। वह आसन और
प्राणायाम के बाद
अपान मुद्रा के
निरंतर अभ्यास द्वारा
सम्भव है।
साधना के क्षेत्र
में प्राण अपान
को सम कर के मिला
देने का नाम ही एक
प्रकार से योग है योग
की उंची उड़ान
के लिए प्राण,
अपान का संयोग
का होना परम
आवश्यक है। प्राण
और अपान मुद्रा
प्रतिदिन बार बार
करने से प्राण
और अपान की स्थिति शरीर
में समत्व प्राप्त
करती है।
समय सीमाः - इस
मुद्रा की कोई समय सीमा
नहीं होती है।
जितना अधिक इस मुद्रा का
अभ्यास किया जाएगा,
उतना अधिक लाभदायक
रहेगा। अपान वायु
का स्थान स्वास्थ्य
केन्द्र (स्वाधिष्ठान केन्द्र) व
शक्ति केन्द्र (मूलाधार
केन्द्र) है। यह
पेट, नाभि, गुदा,
लिंग, घुटना, पिंडी,
जांघ, में है।
विधि : मध्यमा एवं
अनामिका अंगुली के
अग्रभाग को अंगुठे
(Thumb) के अग्रभाग से मिलाये,
शेष कनिष्ठिका व
तर्जनी अंगुली को
सीधा रखें।
लाभ :- 1. इसके प्रयोग
से शरीर के सम्पूर्ण विजातिय तत्व
व मल सरलता
पूर्वक शरीर से बाहर निकल
जाते है।
2. इसके निरंतर प्रयोग
से न केवल सभी प्रकार
के मल-मूत्र,
पसीना आदि विभिन्न
भागों से चार से मिशिन
सेनेने नियमित थान
ग्लान मेते है।
शरीर से निष्कासित
होते है बल्कि
सात्विक भाव उत्पन्न
होते है।
3. यदि किसी व्यक्ति
को लम्बे समय
से पसीना नहीं
आता है। पसीना
न आने से भी मनुष्य
अनेक रोगों का
शिकार बन जाता है। अपान
मुद्रा के प्रयोग
से पसीना कुछ
ही दिनों में
आने लगता है।
4. अपान मुद्रा का
विशेष प्रभाव मूत्राशय
पर पड़ता है।
इसलिए मूत्र रूक
जाने पर यह तुरंत प्रभाव
दिखाती है। यदि किसी व्यक्ति
का मूत्र रूक
गया है और कोई औषधि
और इंजेक्शन के
द्वारा भी नहीं आ रहा
हो तो अपान मुद्रा का
45 मिनट तक अभ्यास
करने से बिना किसी औषधि
के सेवन से यह तकलीफ
दूर हो सकती है।
5. यदि मूत्र बन्द
आज ही लगा हो अर्थात
आज से प्रारम्भ
होने वाले मूत्रावरोध
में यह मुद्रा
तत्काल और आश्चर्यजनक
रूप से लाभ पहुंचती है। रूका
हुआ मूत्र (यदि
प्रोस्टेट की शिकायत
न हो) अवश्य
खुल जाता है।
6. यह मुद्रा पेट
की वायु को भी ठीक
करने में सहायक
होती है और उदरवायु को कम करके वहां
से दर्द एवं
अन्य उपद्रव को
दूर करती है क्योंकि यह मुद्रा
अपानवायु को नियंत्रित
करने वाली मुद्रा
है।
7. कब्ज और बवासीर
में इस मुद्रा
को रोजाना लगातार
कम से कम 45
मिनिट तक करना चाहिए।
8. दांतों को स्वस्थ
रखने के लिए यह मुद्रा
सहायक है।
9. मधुमेह (डायबिटिज) को
नियंत्रण में रखने
के लिए अपान
मुद्रा के साथ प्राण मुद्रा
करने से अच्छा
लाभ होता है।
10. इसके नियमित अभ्यास
से मुख, नाक,
आंख, कान, आदि
के विकार स्वभाविक
रूप से दूर होने लगते
है।
11. मासिक धर्म की
तकलीफ में इस मुद्रा से
राहत मिलती है।
इससे मासिक स्त्राव
का नियंत्रण होकर
उसमें होने वाले
दर्द में लाभ होता है।
12. हाथ में जलन
हो, पैर में जलन हो,
पेशाब में जलन हो तीनों
ही तरह की जलन इस
मुद्रा को करने से दूर
हो जाती है।
13. लो ब्लड प्रेशर
हो तो इस मुद्रा को
नियमित करने से लाभ होता
है
14. नाभि अपनी जगह
से हट जाये तब यह
मुद्रा करने से अपने स्थान
पर आती है।
15. पेट के सभी
अवयवों की क्षमता
विकसित होती है।
किडनी का दोष दूर होता
है और हृदय शक्तिशाली बनता है।
16. माइग्रेन
के दर्द में
भी इस मुद्रा
से राहत मिलती
है।
17. सिर दर्द में
ज्ञान मुद्रा और
प्राण मुद्रा साथ
में करनी चाहिए
18. उल्टी हिचकी और
जी मचलने की
तकलीफ में राहत
मिलती है।
19. यह मुद्रा प्रसव
को सहज रूप से संपादित
करने में महत्वपूर्ण
भूमिका अदा करती
है।
सावधानी : यह मुद्रा
गर्भवती महिला को
8 महीने तक नहीं करनी चाहिए।
8 महीने के बाद यह मुद्रा
दिन में 2 बार
10 मिनिट तक करनी
चाहिए, जिससे कि
सहज प्रसव हो,
यह मुद्रा बच्चों
के जन्म के बाद नहीं
करनी चाहिए।
विशेष नोट : इस
पुस्तक में साथ साथ दो
मुद्राएं करने का
उल्लेख किया गया
है। इसका अर्थ
है पहले दोनों
हाथों से एक मुद्रा करनी
चाहिए। फिर तुरंत
दोनों हाथों से
जो दूसरी मुद्रा
करनी चाहिए। दोनों
मुद्राएं पहले एक
15 मिनिट फिर दूसरी
मुद्रा 15 मिनिट करनी
चाहिए।सावधानी : यह मुद्रा
गर्भवती महिला को
8 महीने तक नहीं करनी चाहिए।
8 महीने के बाद यह मुद्रा
दिन में 2 बार
10 मिनिट तक करनी
चाहिए, जिससे कि
सहज प्रसव
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